उसी के नाम से हर काम का आग़ाज़ करता हूँ जबीं है ख़ाक पर सो अर्श तक परवाज़ करता हूँ मिरे दुश्मन भी मेरी इस अदा पर दाद देते हैं मैं इस अंदाज़ से उन को नज़र-अंदाज़ करता हूँ मुझे इक राज़ से पर्दा उठाना जब भी होता है किसी को राज़दारी से शरीक-ए-राज़ करता हूँ तिरे ही नाम से मिलती है वुसअ'त दिल की दुनिया को मैं लम्हा लम्हा तेरा ज़िक्र बे-आवाज़ करता हूँ ये उर्दू भाई-चारा की अलम-बरदार है 'काशिफ़' ज़बाँ पर अपनी मैं कुछ इस लिए भी नाज़ करता हूँ