टुक आँख मिलाते ही किया काम हमारा तिस पर ये ग़ज़ब पूछते हो नाम हमारा तुम ने तो नहीं ख़ैर ये फ़रमाइए बारे फिर किन ने लिया राहत-ओ-आराम हमारा मैं ने जो कहा आइए मुझ पास तो बोले क्यूँ किस लिए किस वास्ते क्या काम हमारा रखते हैं कहीं पाँव तो पड़ते हैं कहीं और साक़ी तू ज़रा हाथ तो ले थाम हमारा टुक देख इधर ग़ौर कर इंसाफ़ ये है वाह हो जुर्म ओ गुनह ग़ैर से और नाम हमारा ऐ बाद-ए-सबा महफ़िल-ए-अहबाब में कहियो देखा है जो कुछ हाल तह-ए-दाम हमारा गर वक़्त-ए-सहर जाइए होता है ये इरशाद है वक़्त-ए-मुलाक़ात सर-ए-शाम हमारा फिर शाम को आए तो कहा सुब्ह को यूँही रहता है सदा आप पर इल्ज़ाम हमारा सर-गश्तगी-ए-मरहला-ए-शौक़ में ऐ इश्क़ पड़ता है नई वज़्अ से हर गाम हमारा ऐ बरहमन-ए-दैर मोहब्बत में सनम की अल्लाह ही बाक़ी रखे इस्लाम हमारा हम कूचा-ए-दिलदार के होते हैं तसद्दुक़ ऐ शेख़-ए-हरम है यही एहराम हमारा बेताबी-ए-दिल के सबब उस शोख़ तक 'इंशा' पहुँचे है बिला वास्ता पैग़ाम हमारा