तुम चले आओ तो ज़ौक़-ए-ग़म-ए-हिज्राँ भी नहीं जान देने का कुछ ऐसा मुझे अरमाँ भी नहीं देखता है कि कोई बात का पुरसाँ भी नहीं तिरे बीमार को अब ख़्वाहिश-ए-दरमाँ भी नहीं मिरी वहशत के असर से था ज़माना वीराँ मैं बयाबाँ में नहीं हूँ तो बयाबाँ भी नहीं बाइस-ए-क़त्ल हुआ हाल-ए-ज़बून-ए-बिस्मिल ये अगर सच है तो फिर आप का एहसाँ भी नहीं मेरा मरना भी है मौक़ूफ़ इरादों पे तिरे जिस को आसान समझता हूँ वो आसाँ भी नहीं तेरे पैकान-ए-सितम का हुआ मक़्सद हासिल ज़ख़्म दिल में है मिरे और नुमायाँ भी नहीं हम-नवा सोच में हैं बाग़ है सूना सूना मैं क़फ़स में हूँ तो वो रंग-ए-गुलिस्ताँ भी नहीं दिल-ए-गुम-गश्ता से मिलने की तमन्ना है 'शमीम' ये वो ख़्वाहिश है कि जिस का कोई इम्काँ भी नहीं