तुम गुलिस्ताँ से गए हो तो गुलिस्ताँ चुप है शाख़-ए-गुल खोई हुई मुर्ग़-ए-ख़ुश-इल्हाँ चुप है उफ़ुक़-ए-दिल पे दिखाई नहीं देती है धनक ग़म-ज़दा मौसम-ए-गुल अब्र-ए-बहाराँ चुप है आलम-ए-तिश्नगी-ए-बादा-गुसाराँ मत पूछ मय-कदा दूर है मीना-ए-ज़र-अफ़शाँ चुप है और आगे न बढ़ा क़िस्सा-ए-दिल क़िस्सा-ए-ग़म धड़कनें चुप हैं सरिश्क-ए-सर-ए-मिज़्गाँ चुप है शहर में एक क़यामत थी क़यामत न रही हश्र ख़ामोश हुआ फ़ित्ना-ए-दौराँ चुप है न किसी आह की आवाज़ न ज़ंजीर का शोर आज क्या हो गया ज़िंदाँ में कि ज़िंदाँ चुप है