तुम हो मेरी ज़ीस्त का हासिल शहज़ादे तोड़ न देना तुम मेरा दिल शहज़ादे अपने अंदर तुम को देख रही हूँ मैं आईना है मेरे मुक़ाबिल शहज़ादे सीम-ओ-ज़र पर इतराते थे देखो अब इश्क़ नगर में बन गए साइल शहज़ादे शहज़ादी ने दिल हारा और जीती जंग माल-ए-ग़नीमत में तुम शामिल शहज़ादे वस्ल की रुत का अब तो इस्तिक़बाल करो कूक रही है बाग़ में कोयल शहज़ादे शहज़ादे ये दुनिया फ़िक्र में ग़लताँ है जब से मैं हूँ तुम पर माइल शहज़ादे डगर डगर मैं भटक रही हूँ आज तलक तुझ से बिछड़ कर कैसी मंज़िल शहज़ादे इक जानिब तू दूसरी जानिब तेरी 'रबाब' एक ज़माना बीच में हाइल शहज़ादे