तुम से दिलकश थी काएनात मिरी खा गई मात क्यों हयात मिरी दिल में क्यों हूक सी उठी ऐ दोस्त याद क्या आई कोई बात मिरी शुक्रिया इन उदास आँखों का कट गई मय-कदे में रात मिरी यूँ खुली तेरी ज़ुल्फ़-ए-नाज़ कि बस बस गई ख़ुशबुओं में रात मिरी दोस्तों ही का फ़ैज़ है वर्ना जीत क्या और क्या है मात मिरी 'राज' इक आँख के इशारे पर लुट गई सारी काएनात मिरी