यूँ तसव्वुर में तिरा हुस्न नज़र आता है जैसे दर्पन में कोई अक्स झलक जाता है एक मुद्दत से है गो तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ फिर भी दिल को इक जज़्बा-ए-बे-नाम सा तड़पता है गहरे हो जाते हैं जिस वक़्त अँधेरे ग़म के तेरी बिखरी हुई ज़ुल्फ़ों का ख़याल आता है कितने दिलचस्प हैं आज़ार-ए-मोहब्बत ऐ दोस्त फूल खिलते हैं तो दिल और भी घबराता है रह गए बुझ के मोहब्बत भरी यादों के चराग़ रौशनी दिल में कोई फिर भी किए जाता है एक ख़ामोश उदासी का है आलम तारी कौन ख़्वाबों में दबे पाँव चला आता है 'राज' आता है कभी प्यार में ऐसा भी मक़ाम एक दिल रोता है और सारा जहाँ गाता है