तुम्हारे बिन गुज़ारा हो रहा है ख़सारे पर ख़सारा हो रहा है बहुत सोचा बचा लूँ ख़ुद को लेकिन उधर से फिर इशारा हो रहा है शुजाअ'त तो शहादत माँगती है पर अब इस से किनारा हो रहा है मुझे फिर इश्क़ ने आवाज़ दी है मुझे तो ये दोबारा हो रहा है अदू के साथ उस को देखता हूँ क़यामत का नज़ारा हो रहा है ज़रा सी तू ने क्या उल्फ़त दिखाई तिरा हर ग़म गवारा हो रहा है मकीं तुम जब से इस दिल में हुई हो हर इक शय से किनारा हो रहा है ये तेरा लम्स था जिस की वजह से ये मेरा दिल शरारा हो रहा है तुझे आवाज़ दे कर थक चुका हूँ इसी ख़ातिर ग़रारा हो रहा है