तुम्हारे साथ जो लम्हात थे गुज़ारे हुए तुम्हारे बाद वही ज़ीस्त के सहारे हुए ज़बाँ पे ज़ंग जो देखा तो ये समझ आया ज़माने हो गए जैसे उसे पुकारे हुए हमारे बाद हमें ढूँडते फिरेंगे लोग हमारे बाद कहेंगे बड़े ख़सारे हुए अख़ीर शाम थी जब दोनों पास बैठे थे अजीब शक्ल थी दोनों की जैसे हारे हुए क़दम क़दम पे मिलेंगे तुम्हें लहू के निशाँ हमारे इश्क़ के ये भी तो इस्तिआ'रे हुए मैं अपनी ज़ात की तारीकियों में जब गुम था तब उस की याद के रौशन सभी सितारे हुए