तुम्हारी फ़र्ज़ानगी से कुछ कम नहीं है दीवाना-पन हमारा तुम्हें मुबारक तुम्हारी हिजरत हमें मुबारक वतन हमारा जो गुल्सितानों की शाह-राहों पे अपने बिस्तर लगा न पाए वही वहाँ जा के कह रहे हैं नहीं है कोई चमन हमारा ब-क़ौल-ए-'इक़बाल' पहले पहले यहाँ लगाए थे जिस ने डेरे वो कारवाँ आज भी बसा है कनार-ए-गंग-ओ-जमन हमारा बई'द-ए-अख़्लाक़-ओ-आदमिय्यत है रहनुमाओं से बद-गुमानी कमाल-ए-सादा-दिली तो ये है कि साथ दे राहज़न हमारा सदा-ए-नाक़ूस-ए-बुत-कदा पर गिरफ़्त का मशवरा न दीजे इबादत-ओ-बंदगी के माने' नहीं है जब बरहमन हमारा ये दूसरी बात है कि हिजरत न कर के दर-दर की ख़ाक छानी चने न बेचेगा 'जोश' की तरह ज़ौक़-ए-शेर-ओ-सुख़न हमारा वतन की इस सर-ज़मीं को ऐ 'शाद' कौन से दिल से छोड़ दें हम वतन की जिस सर-ज़मीं पे गुज़रा है दौर-ए-दार-ओ-रसन हमारा