तुम्हारे शहर में देखूँ तो क्या नहीं मिलता बस अपने घर के लिए रास्ता नहीं मिलता उरूज पर है नए मौसमों का जाह-ओ-जलाल शजर पे कोई भी पत्ता हरा नहीं मिलता अभी अभी कोई आँधी इधर से गुज़री है रह-ए-हयात मुझे नक़्श-ए-पा नहीं मिलता बिछड़ के तुझ से तबीअत उचाट रहती है ख़ुद अपने घर में भी घर का मज़ा नहीं मिलता तुम्हें भी रोज़ कहानी वही सुनानी है मुझे भी ख़्वाब कोई दूसरा नहीं मिलता मता-ए-बर्ग-ओ-समर भी लुटा चुके अश्जार किसी तरह भी मिज़ाज-ए-हवा नहीं मिलता मैं किस तरह से 'ज़फ़र' मसअलों को सुलझाऊँ किसी भी बात का कोई सिरा नहीं मिलता