तुम्हारी बज़्म में जिस बात का भी चर्चा था मुझे यक़ीन है उस में न ज़िक्र मेरा था न सर्द आहें न शिकवे न ज़िक्र-ए-दर्द-ए-फ़िराक़ हमारे इश्क़ का अंदाज़ ही निराला था कल आ गया था सिवा नेज़े पर मिरा सूरज मैं जल रहा था मगर हर तरफ़ अंधेरा था था चेहरा यख़-ज़दा जज़्बात की हसीं तस्वीर बदन कशिश का मुरक़्क़ा सराब-आसा था मुझे भी फ़ुर्सत-ए-नज़्ज़ारा-ए-जमाल न थी और उस को पास किसी और के भी जाना था