उस ने कल भागते लम्हों को पकड़ रक्खा था बात दीवाने की लगती है सितमगर जैसी जिस्म था उस का बस इक जिस्म कोई बात न थी हाँ निगाहों में कोई चीज़ थी तेवर जैसी क्या कहा तू मिरा साया है यक़ीं मुझ को नहीं शक्ल तो कुछ नज़र आती है पयम्बर जैसी मैं ने कल तोड़ा इक आईना तो महसूस हुआ इस में पोशीदा कोई चीज़ थी जौहर जैसी