तुम्हारी तिश्ना-निगाही का एहतिराम करें फ़ुरात-ए-दश्त-ए-तमन्ना तुम्हारे नाम करें ये हिज्र उन को मिला है उन्ही की ख़्वाहिश पर अब अहल-ए-दर्द ये जीने का एहतिमाम करें तुम्हारी बज़्म में कुछ भी समझ नहीं आता किसे इशारा करें और किसे सलाम करें बहुत ज़रूरी है ये धूप टालने के लिए शजर लगा के तिरे फ़लसफ़े को आम करें मुख़ालिफ़त भी मज़ा देती है अगर हम लोग मुख़ालिफ़त के उसूलों का एहतिराम करें तुम्हारे वस्ल की ख़ुशियों में दिल ये करता है तुम्हारे नाम पर आज़ाद इक ग़ुलाम करें यही तो पहला सबक़ है ज़माना-गर्दी का बग़ल में ले के छुरी मुँह में राम राम करें हिसार-ए-जाँ से बहुत ऊँची हो गई है 'अमीर' फ़सील-ए-जब्र गिराने का इंतिज़ाम करें