तुम्हें तुम से चुराने आ गए हैं मोहब्बत को बढ़ाने आ गए हैं हँसी को क़ैद से आज़ाद कर दो ये देखो मुस्कुराने आ गए हैं अभी तो हम से मिलने तुम चले आओ कि अब मौसम सुहाने आ गए हैं ग़ज़ल लिक्खी है यादों में तुम्हारी वही शब भर सुनाने आ गए हैं गिले-शिकवे बहुत थे दरमियाँ तो कि अब सारे मिटाने आ गए हैं ग़मों का बोझ है सर पर तुम्हारे अबद तक हम उठाने आ गए हैं कई अल्फ़ाज़ सीने में दबे थे सभी तुम को बताने आ गए हैं मोहब्बत के तक़ाज़े दुश्मनों में ये 'शीरीं' हम निभाने आ गए हैं