तुम को अपनी नज़र बहुत कुछ है हम को अपना जिगर बहुत कुछ है तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल के सदक़े अपनी शाम-ओ-सहर बहुत कुछ है बात जब है किसी का दिल रख ले यूँ वो मय-गूँ नज़र बहुत कुछ है ये जबीन-ए-नियाज़ क्या लेकिन आप का संग-ए-दर बहुत कुछ है परतव-ए-दाग़-ए-दिल से क्या निस्बत यूँ ज़िया-ए-सहर बहुत कुछ है बे-उसूली मिरा मिज़ाज नहीं गाहे-गाहे मगर बहुत कुछ है अपनी ख़ातिर तो उम्र भर 'नाज़िम' निगह-ए-मुख़्तसर बहुत कुछ है