उस की गहराई का अंदाज़ा नहीं वो समुंदर है कोई दरिया नहीं नफ़रतों की खाइयों को पाटने दिल किसी का तोड़ना अच्छा नहीं ये खुला अहबाब जब दुश्मन हुए साफ़-गोई का सिला अच्छा नहीं मिस्ल-ए-गर्द-ए-बाद चक्कर में रहा मैं किसी आवाज़ पर ठहरा नहीं इक घुटन ज़ंजीर-ए-पा बनती गई मैं हिसार-ए-ज़ात से निकला नहीं फूल सी फ़ितरत 'रज़ा' दरिया सा दिल मैं किसी की राह का काँटा नहीं