उदास क्यों है कोई आसरा नहीं है क्या अगर कोई भी नहीं है ख़ुदा नहीं है क्या ये बे-गुनाहों की लाशें सवाल करती हैं शराफ़तों का ज़माना रहा नहीं है क्या मिरे क़लम का ख़रीदार बन के निकला है अमीर-ए-शहर मुझे जानता नहीं है क्या खिले हैं अर्ज़-ए-वतन पर मोहब्बतों के गुलाब ये ख़्वाब बारहा देखा हुआ नहीं है क्या फिर एक बार सफ़र के लिए कमर बाँधो जो खो गए हैं उन्हें ढूँढना नहीं है क्या सुना है अब भी वो तन्हाइयों में रोती है तो मेरी याद का सूरज बुझा नहीं है क्या मैं तुझ से ऐ मिरे परवरदिगार क्या माँगूँ जो मेरा हाल है तुझ पर खुला नहीं है क्या