उक्ता के चला आया हूँ खटपट से बड़ी दूर ख़ुद अपने ही घर अपनी ही चौखट से बड़ी दूर हर साँस उदासी का सफ़र करना है मुझ को इक राह बने दिल की थकावट से बड़ी दूर किस दर्जा सुकूँ-अफ़ज़ा है ये हिज्र का आलम इस इश्क़ को रख वस्ल के झंझट से बड़ी दूर लाज़िम है किसी बात से दिल तेरा दुखा दे तू रहियो मुझ ऐसे किसी मुँह-फट से बड़ी दूर ये हम जो सुहाते नहीं दुनिया को नज़र भर किरदार के ख़ालिस हैं बनावट से बड़ी दूर दुनिया कोई रास आई तो ख़ल्वत से परे की दिल जा के बसा भी है तो जमघट से बड़ी दूर