उदास रुत के ठहरने का दुख समझते हो चलो कि तुम भी बिखरने का दुख समझते हो सुना तो दूँ तुम्हें क़िस्सा मिरी मोहब्बत का इक एक ज़ख़्म उभरने का दुख समझते हो किसी को सर पे बिठाया है क्या कभी तुम ने किसी के दिल से उतरने का दुख समझते हो तमाम रास्ते जिन पर चले थे हम दोनों अब उन से तन्हा गुज़रने का दुख समझते हो हसीं लिबास में भी ख़ुश नहीं है वो दुल्हन बग़ैर मर्ज़ी सँवरने का दुख समझते हो