उदास उदास फ़ज़ा काएनात ठहरी है

उदास उदास फ़ज़ा काएनात ठहरी है
लबों पे सब के कोई सच्ची बात ठहरी है

अजब सुकूत का मंज़र है सारे आलम में
है वक़्त ठहरा हुआ और हयात ठहरी है

उफ़ुक़ पे शम्स की आमद का शोर है कब से
इस इंतिज़ार में अब तक ये रात ठहरी है

किसी की ज़ीस्त का रुकना मुहाल है लेकिन
किसी के वास्ते अक्सर वफ़ात ठहरी है

दरिंदे दश्त फ़रिश्ते फ़लक पे ठहर गए
ज़मीं पे सिर्फ़ हमारी ही ज़ात ठहरी है

ये चंद सिक्के कमा कर ख़ुशी से फूलो मत
तुम्हारी फ़त्ह के अंदर ही मात ठहरी है

तमाम लोग चले जाएँ क्या बयाबाँ में
कि बस्तियों में क़ज़ा की बरात ठहरी है

शरीफ़-ज़ादों ने 'एहसास' तौबा कर ली क्या
हमारे शहर में क्यों वारदात ठहरी है


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