उदासियों का करिश्मा था कोई बात न थी कि ज़ात ज़ात का मदफ़न थी मेरी ज़ात न थी हमारा अपना ही घर था इसे तो पहचानें यहाँ तो रात की तारीकियों में रात न थी ज़माना रूठ के मेरी अना से टकराया बस इतनी बात थी वैसे ये कोई बात न थी जिलौ में ग़म के थकन साथ साथ रहती थी वो आ के देख ही लेता कोई बरात न थी अजीब बात थी यारान-ए-नुक्ता-संज नहीं मिरी हयात के दामन में भी हयात न थी कोई भी सम्त न थी जब सफ़र पे निकला था मैं शश-जिहात था रस्ते में कोई घात न थी हवा का झोंका था मैं अपने बाग़ में भी 'मतीन' गुज़र गया था तो ख़ाक-ए-चमन भी साथ न थी