उजड़ा उजड़ा शहर-ए-तमन्ना कैसे इसे आबाद करें तुम ही क़ातिल तुम ही आदिल हम किस से फ़रियाद करें अम्न-ओ-उख़ुव्वत अपना मस्लक मेह्र-ओ-वफ़ा है अपना दीन अपना तो ये काम नहीं है ज़ुल्म-ओ-इस्तिब्दाद करें ख़ुश-फ़हमी की पतवारों से कश्ती खेना क्या मा'नी कुछ सोचें कुछ राह निकालें वक़्त न यूँ बर्बाद करें अहल-ए-जुनूँ ने जिस बस्ती को ताराज-ओ-पामाल किया अहल-ए-मोहब्बत आओ मिल कर फिर उस को आबाद करें झूटे हैं सब रिश्ते नाते कोई किसी का मीत नहीं किस किस का अरमान करें हम किस किस को हम याद करें