उजाला जब शब-ए-ज़ुल्मात पर उतरता है वो हर्फ़ हर्फ़ मिरी ज़ात पर उतरता है उस एक रंग पे क़ुर्बान दिल के सब मौसम जो रंग शिद्दत-ए-जज़्बात पर उतरता है वो ख़्वाब-गाह की रौनक़ वो चाँद जैसा बदन कभी हयात कभी ज़ात पर उतरता है सुख़न-वरान-ए-कुहन उस पे रश्क करते हैं जो दर्द पर्चा-ए-अबयात पर उतरता है कभी-कभार तो सुक़रात की रिदा बन कर शऊर-ए-फ़िक्र तिलिस्मात पर उतरता है