उकेरो न सीने में बचपन से मुस्तक़बिल और कामयाबी का डर दिल बनाओ किसी धूल खाती हुई कार के काँच पर उँगलियाँ फेर कर दिल बनाओ कभी लौट आओ जो शहर-ए-तमन्ना में तो मुझ पे इतना सा एहसान करना यहाँ तीर पहले से मौजूद है जो उसे तोड़ना मत अगर दिल बनाओ तख़त मेज़ कुर्सी चमकते हैं कारी-गरों के लहू और पसीने से घर में नुमाइश ही करनी है वहशत की तो छील कर क्यों न जिस्म-ए-शजर दिल बनाओ बुज़ुर्गों ने जो भी किया है उसे भूलना मत कभी इम्तिहानों में बच्चो किताबों में नक़्शे पे कितने भी बॉर्डर हों तुम कापियों में मगर दिल बनाओ जो ख़ौफ़-ए-नज़र है ज़माने के दिल में वो बढ़ती हुई दूरियों का सबब है हटा दो सभी अपने अपने घरों से नज़र-बट्टू और दर-ब-दर दिल बनाओ अगर चाहते हो ठिकाने लगाना भटकते हुए आशिक़ों को यकायक शब-ए-हिज्र में एक उदासीन तालाब पर चाँदनी से क़मर दिल बनाओ 'अनन्त' उजलत-ए-राएगानी के मारे बदलते रहे हैं नशा उम्र-भर से दवाओं के नामों को छोड़ो तुम आशिक़ के पर्चे पे बस डॉक्टर दिल बनाओ