उल्फ़त के फ़साने माज़ी के कुछ भूले कुछ याद आ भी गए ग़म के बादल दिल पे मिरे कुछ छट भी गए कुछ छा भी गए जब इश्क़ की वादी में हम तुम ले कर हाथों में हाथ चले गो ख़ार भी उलझे दामन में कुछ लम्हे गुल बरसा भी गए जब राज़-ए-मोहब्बत मुझ से सुना कुछ वो भी पसीजे दम भर को चुप रहते हुए कुछ कह भी गए और कहते हुए कतरा भी गए बाज़ी में मोहब्बत की अक्सर कुछ मरहले ऐसे आए हैं जब जीत के भी हम हार गए और हार के हम कुछ पा भी गए वो आए और कुछ हाल न पूछा दिल का दर्द भी कुछ न सुना यूँ देख कि उन को दिल के कँवल कुछ खिल भी गए मुरझा भी गए उलझी सी हैं इश्क़ की राहें जोखिम सी कुछ इश्क़ की मंज़िल इन राहों में कुछ खो भी गए और मंज़िल को कुछ पा भी गए गो लाख जतन हम ने भी किए पर क़ल्ब की तस्कीं हो न सकी अरमानों से दिल ख़ाली न हुआ कुछ घुट भी गए कुछ पा भी गए क्या जाने हम क्या कह बैठे वो कह न सके जो कहना था हम प्यार के ताने-बाने को सुलझा भी गए उलझा भी गए ये हुस्न की मस्ती उन की 'हबीब' ये क्या ही अनोखी मस्ती है कुछ ख़ुद भी हुए बे-ख़ुद उस से कुछ बे-ख़ुद हम को बना भी गए