उमीद-ए-दीद काम आए न आए सहर आई है शाम आए न आए मयस्सर है निगाह-ए-लुत्फ़-ए-साक़ी हमें क्या दौर-ए-जाम आए न आए शराब आँखों ही आँखों में न पी लूँ मिरे लब तक वो जाम आए न आए सबा करती तो है कोशिश बराबर तिरा तर्ज़-ए-ख़िराम आए न आए कली चटकी पहुँच जाएगी बुलबुल सबा ले कर पयाम आए न आए मिरे दिल में है उस का लुत्फ़-ए-गुफ़्तार बुत-ए-शीरीं-कलाम आए न आए सरापा पैकर-ए-तस्लीम हूँ मैं कभी उन का सलाम आए न आए उन्हें आती है मेरी याद अब भी ज़बाँ पर मेरा नाम आए न आए बना ले जावेदाँ उल्फ़त से इस को कभी फिर ऐसी शाम आए न आए मैं राही हूँ है चलना काम मेरा कोई दिलकश मक़ाम आए न आए निगाहें उन की सब कुछ कह गई हैं कोई ले कर पयाम आए न आए 'हबीब' अहल-ए-ज़बाँ से हम-सुख़न हूँ वो अंदाज़-ए-कलाम आए न आए