उम्मीद क्या थी और वो क्या दे गया मुझे कुछ अपना कुछ मिरा ही दिया दे गया मुझे ये वक़्त भी अजीब है जो वक़्फ़े वक़्फ़े से अंदाज़ सोचने का नया दे गया मुझे इस ख़ुश-मिज़ाज दोस्त के क़ुर्बान जाइए हर ज़ख़्म मुस्कुरा के नया दे गया मुझे जो मेरा हम-सफ़र था बड़ा ही अजीब था अपनी जगह से उठ के जगह दे गया मुझे शाइ'र नहीं हूँ फिर भी मैं शाइर-नवाज़ हूँ अंदाज़-ए-शाइ'राना ख़ुदा दे गया मुझे जब तल्ख़ियाँ हयात की हद से बढ़ीं 'नवाज़' तब जीना इक अलग से मज़ा दे गया मुझे