उम्र भर परखा मोहब्बत से अदा से पहले उस ने ठुकरा दिया फिर मुझ को ख़ता से पहले अब तो इक रस्म-ए-मोहब्बत है मोहब्बत कब है वर्ना जाता नहीं ये रोग क़ज़ा से पहले आज के दौर का इंसाफ़ तो देखे कोई है यहाँ हुक्म-ए-सज़ा अज़्म-ए-ख़ता से पहले कितना तड़पेगा कोई आलम-ए-तन्हाई में तुम ने सोचा भी नहीं तर्क-ए-वफ़ा से पहले नाज़ है अपने मुक़द्दर पे हमें ऐ 'अम्बर' वो अता करता है हर चीज़ दुआ से पहले