उम्र सहरा-ए-ख़मोशी में गुज़ारें कैसे बार बार उस की जगह ख़ुद को पुकारें कैसे टिकटिकी बाँध के मैं देख रहा था फिर भी कट गई मेरी निगाहों से बहारें कैसे जिस में तूफ़ाँ है न तूफ़ान के कोई आसार कश्तियाँ ऐसे समुंदर में उतारें कैसे रात के दश्त में नादीदा दयारों का सफ़र ऐसी सूरत में कोई राह सँवारें कैसे लोग 'आबिद' के लिए संग-ब-कफ़ फिरते हैं उस को इस शहर की गलियों से गुज़ारें कैसे