उस की ये शर्त कि हर लफ़्ज़ फ़क़त उस का हो मुझ को ये ज़िद कि जो मा'नी हो मिरा अपना हो होंट सिल जाएँ तो आँखों से बयाँ हो जाए दर्द ऐ दोस्तो इतनी तो कसक रखता हो मैं समुंदर का भी सामान लिए चलता हूँ राह में क्या ये ज़रूरी है फ़क़त सहरा हो आज तो लगता है मज़बूत तुम्हारा ये बाँध कल किसे इल्म कि दरिया का इरादा क्या हो तुम ने हर राह पे इक रोक लगा तो दी है ये ज़रा सोच लो गर फिर भी हमें जाना हो 'आबिद' इक बार ज़रा नापें तो उस के क़द को ऐन मुमकिन है यूँही सब से बड़ा लगता हो