उन के बग़ैर हम जो गुलिस्ताँ में आ गए महसूस ये हुआ कि बयाबाँ में आ गए तशहीर-ए-दिल-गिरफ़्तगी-ए-हुस्न हो गई आँसू छलक के चश्म-ए-पशेमाँ में आ गए हम तर्क-ए-रब्त-ओ-ज़ब्त-ए-मोहब्बत के बावजूद सौ बार खिंच के कूचा-ए-जानाँ में आ गए फूलों को रास आया न जब अर्सा-ए-बहार गुलशन से हट के गोशा-ए-दामाँ में आ गए हर-चंद अहल-ए-होश थे अरबाब-ए-ज़िन्दगी लेकिन फ़रेब-ए-गर्दिश-ए-दौराँ में आ गए आया मिरी ज़बाँ पे यकायक जो उन का नाम किस किस के हाथ मेरे गरेबाँ में आ गए छुप कर निगाह-ए-शौक़ से दिल में पनाह ली दिल में न छुप सके तो रग-ए-जाँ में आ गए थे मुन्तशर अज़ल में जो ज़र्रात-ए-कू-ए-दोस्त इंसान बन के आलम-ए-इम्काँ में आ गए जिनकी अदा अदा में हैं रानाइयाँ 'शकील' अशआ'र बन के वो मिरे दीवाँ में आ गए