उन के हुस्न-ओ-जमाल की सूरत जैसे दिलकश ख़याल की सूरत ज़िंदगी यूँ भी इक मुअ'म्मा है ज़ुल्फ़-ए-अंबर के जाल की सूरत एक मैं हूँ और एक जान मिरी बाक़ी सब कुछ वबाल की सूरत जो भी दुश्मन हैं पाल रक्खे हैं सभी अहल-ओ-अयाल की सूरत इक कहानी थी जो कि ख़त्म हुई वहशत-ए-माह-ओ-साल की सूरत शहर-ए-ख़ाना-ख़राब में 'बरहम' जी रहे हैं कमाल की सूरत