उन की बातों को तोलता हूँ मैं फिर ज़बाँ अपनी खोलता हूँ मैं क्यों न मीठा हो नीम नफ़रत का प्यार का रस जो घोलता हूँ मैं दोष देने से पहले औरों को ऐब अपना टटोलता हूँ मैं सामना आँधियों का क्या करता जब हवाओं से डोलता हूँ मैं मारना डंक मेरी फ़ितरत है इस लिए कुछ भी बोलता हूँ मैं