उस का बदन भी चाहिए और दिल भी चाहिए सुर्ख़ी-ए-लब भी गाल का वो तिल भी चाहिए ये कारोबार-ए-शौक़ है बे-गार तो नहीं इस कारोबार-ए-शौक़ का हासिल भी चाहिए पानी और आग एक जगह चाहिएँ हमें जो शाख़ गुल-ब-दस्त हो क़ातिल भी चाहिए सब को ख़बर तो हो कि वो मेरा है बस मिरा पहलू में यार बरसर-ए-महफ़िल भी चाहिए पा कर चराग़-ए-दिल की हवस और बढ़ गई मौसूफ़ को अब इक मह-ए-कामिल भी चाहिए यूँ बे-कनार आरज़ूओं से वसूल क्या ख़्वाहिश को एक सम्त भी साहिल भी चाहिए ज़ोलीदा-मू ओ चाक-गरेबाँ सब अहल-ए-दिल कोई तो इस क़बीले में आक़िल भी चाहिए अपनी अलग शनाख़्त भी 'इमरान' हो ज़रूर वो शख़्स अपनी ज़ीस्त में शामिल भी चाहिए