उस का दामन छूट गया दिल का सहारा टूट गया समझे जिस को रहबर-ए-अम्न वो ही सुकूँ भी लूट गया मुझ से वो हैं रूठे रूठे मेरा मुक़द्दर फूट गया चोट नज़र की सह न सका दिल का शीशा टूट गया रुकते नहीं हैं बहते अश्क बंद-ए-दरिया टूट गया रहता है वो मेरे दिल में किस ने कहा है छूट गया तिरछी नज़र से यूँ देखा हाथ से साग़र छूट गया मिल न सकी उस की चौखट पाँव का छाला फूट गया अश्क तो कोई टपका नहीं शायद तारा टूट गया चुपके से छेड़ा उस ने 'फ़ज़ा' फोड़ा दिल का फूट गया