उस के दिल पर असर नहीं होता बे-ख़बर बा-ख़बर नहीं होता इश्क़ ही जिन का दीन-ओ-मज़हब हो मौत का उन को डर नहीं होता प्यार करता न मैं अगर तुझ से इस तरह दर-ब-दर नहीं होता जाने क्यों ख़ुश्क हो गईं आँखें अब तो दामन भी तर नहीं होता दिल की वीरान हो गई बस्ती उस का जब से गुज़र नहीं होता ऐ मिरे हम-सफ़र कहाँ है तू मुझ से तन्हा सफ़र नहीं होता हौसले दिल के हों बुलंद अगर रास्ता पुर-ख़तर नहीं होता