उस की आँखों पे मान था ही नहीं ख़्वाब थे ख़्वाब-दान था ही नहीं मैं तआक़ुब में चल पड़ा जिस के धूल थी कारवान था ही नहीं दो ज़मीं-ज़ाद जिस में रह सकते इस क़दर आसमान था ही नहीं गिर पड़ा हूँ तो रास्ते ने कहा तेरा मुझ पर तो ध्यान था ही नहीं एक ख़्वाहिश थी दो दिलों के बीच और कुछ दरमियान था ही नहीं हम ने फूलों से ख़ूब बातें कीं बाग़ में बाग़बान था ही नहीं उस ने चाहा कि जाना जाऊँ मैं उस से पहले जहान था ही नहीं उम्र उस में गुज़ार दी 'मुमताज़' वो जो मेरा मकान था ही नहीं