उस की याद और दर्द की सौग़ात मेरे साथ थी उस से बढ़ कर एक तन्हा रात मेरे साथ थी मुझ को तन्हाई में भी एहसास-ए-तन्हाई न था हर गली में गर्दिश-ए-हालात मेरे साथ थी रफ़्ता रफ़्ता बंद कलियों के भी लब खुलने लगे आब-ए-सब्र ओ हिद्दत-ए-इसबात मेरे साथ थी बंद खिड़की पर भी 'ख़ालिद' एक दिन पहरे लगे ऐसी भी कुछ सूरत-ए-हालात मेरे साथ थी