उस शोख़ को अपना करने का बे-समझे न अरमाँ कर लेना भूले से कभी ऐसा सौदा मत ऐ दिल-ए-नादाँ कर लेना अंजाम-ए-मोहब्बत क्या होगा आग़ाज़ में इस का ध्यान रहे दरिया में उतरने से पहले अंदाज़ा-ए-तूफ़ाँ कर लेना ज़ाहिर में तअल्लुक़ लाख रहे हो सकती नहीं है यक-जेहती दिल देना किसी काफ़िर को अगर तो पहले मुसलमाँ कर लेना है ज़ब्त-ए-अलम में पोशीदा मेराज-ए-तरक़्क़ी का ज़ीना तुम सब्र-ओ-तहम्मुल से अपनी मुश्किल को भी आसाँ कर लेना इक रोज़ यहाँ से जाना है ये बात हमेशा याद रहे सामान-ए-सफ़र कुछ कर लेना कुछ कार-ए-नुमायाँ कर लेना सुनता हूँ 'रियाज़' इस दुनिया में इक रोज़ शफ़क़ की शोहरत थी उन जैसे मुअज़्ज़िज़ लोगों का तुम ख़ुद को सना-ख़्वाँ कर लेना