उस सितमगर से आश्नाई की उम्र भर जिस ने बेवफ़ाई की हँसते हँसते ही तोड़ना दिल का इक अदा है ये दिलरुबाई की मैं कि ख़ामोश इश्क़ का तालिब उन को आदत है ख़ुद-नुमाई की दर्द-ओ-ग़म और कर्ब का आलम हाए क्या रात थी जुदाई की उन का दीदार गरचे मुश्किल था जुरअत-ए-शौक़ ने रसाई की न चला गर्द-ए-कारवाँ तक मैं इंतिहा है शिकस्ता-पाई की जब असीरी में क़ुर्ब हो उन का कौन ख़्वाहिश करे रिहाई की रंज-ओ-ग़म में भी मुतमइन रखना ये तो है शान किबरियाई की ग़म की तारीक वादियों में 'अज़ीम' दिल के ज़ख़्मों ने रहनुमाई की