उसे कह दो हवादिस के बिछे हैं जाल सड़कों पर चला करता है जो हर दम घमंडी चाल सड़कों पर अगर मस्लक के झगड़ों ने मसाजिद बाँट रक्खी हैं तो फिर बहर-ए-ख़ुदा अपने मुसल्ले डाल सड़कों पर कोई सिगनल के वक़्फ़े तक भी रुकने को नहीं राज़ी गँवा देता है कोई हँस के सालों-साल सड़कों पर मशीनें गाड़ियाँ ही घूमती हैं रात-दिन यारो हमारे दौर में है आदमी का काल सड़कों पर बिगड़ जाती है जब तक़दीर की और वक़्त की गाड़ी उतर आते हैं सुल्ताँ बन के फिर कंगाल सड़कों पर कुँवारी कोई मछली शब में तन्हा घर से न निकले कि शब में फिरते हैं भूके कई घड़ियाल सड़कों पर नहीं गर नाम मेरा ना सही पर कम से कम ये हो मिरी ग़ज़लें चलें उस के लबों की लाल सड़कों पर चमन की सम्त जाती तितलियाँ रह से भटक जाएँ वो लहरा दे जो गुल जैसे महकते बाल सड़कों पर 'नबील' इस तरह चिमटी है किसी की याद इस दिल से जमी रहती है जैसे गर्द की इक शाल सड़कों पर