यही जो आज हैं ख़ारों पे चलने वाले लोग कभी थे चाँद सितारों पे चलने वाले लोग इन्हें शुऊ'र नहीं किस तरफ़ को जाते हैं ये सब हैं जोश में नारों पे चलने वाले लोग सुलगती रेत हो नेज़ा हो आग-ओ-दरिया हो हैं मेरी क़ौम में चारों पे चलने वाले लोग ज़बान कैसे समझ पाएँगे अज़ीमत की ये मस्लहत के इशारों पे चलने वाले लोग जुनून-ए-इश्क़ के मारों की है यही तमसील हों जैसे बिजली के तारों पे चलने वाले लोग भटक रहा है अँधेरे में हक़ कि मिल जाएँ चमकती तेग़ की धारों पे चलने वाले लोग 'नबील' प्यार की इक झील था मगर अफ़सोस समझ सके न किनारों पे चलने वाले लोग