वो गर्म-जोशी का इज़हार कर दिया उस ने कि बर्फ़ था मैं शरर-बार कर दिया उस ने थी उस के क़ुर्ब में जैसे कोई मसीहाई चला गया है तो बीमार कर दिया उस ने बस एक ईंट ग़लत-फ़हमी की पड़ी मुझ से उस एक ईंट को दीवार कर दिया उस ने उजाड़ दिल पे घटा बन के इस तरह बरसा सुलगते दश्त को गुलज़ार कर दिया उस ने बहुत यक़ीन था इक़रार का मगर 'काशिफ़' किसे बताएँ कि इंकार कर दिया उस ने