उसी की हो गई हूँ रफ़्ता रफ़्ता उसी में खो गई हूँ रफ़्ता रफ़्ता मैं किश्त-ए-ज़ीस्त में फ़स्लों की सूरत कुछ आँसू बो गई हूँ रफ़्ता रफ़्ता गुज़ारी हैं हज़ारों दुख की रातें बहादुर हो गई हूँ रफ़्ता रफ़्ता सितम सह कर रही ख़ामोश सदियों वो समझा सो गई हूँ रफ़्ता रफ़्ता मैं हो कर बे-ख़ता मुजरिम ही ठहरी तो बाग़ी हो गई हूँ रफ़्ता रफ़्ता जफ़ा ख़ू से वफ़ाएँ करते करते दिवानी हो गई हूँ रफ़्ता रफ़्ता 'अयाँ' पत्थर के सीने में ठहर कर मैं पानी हो गई हूँ रफ़्ता रफ़्ता