उसी ने प्यार बख़्शा और उसी ने बंदगी बख़्शी मिरे मालिक ने मुझ को इस जहाँ की हर ख़ुशी बख़्शी अदीबों से भरी महफ़िल में आना था कहाँ मुमकिन उसी ने शेर लिखवाए उसी ने शाइरी बख़्शी मैं सागर था मुझे ख़ारा नहीं रहने दिया उस ने कि लहराती सी बल खाती मोहब्बत की नदी बख़्शी अँधेरों के घने सायों का क़ब्ज़ा था तभी रब ने रिहाई उन से दिलवाई बशर को रौशनी बख़्शी ख़ुशी और ग़म में क्या है फ़र्क़ ये महसूस करने को सभी को दिल दिया इक और आँखों को नमी बख़्शी तिरी कारी-गरी के सब हैं दीवाने मिरे मौला सितारे अर्श को बख़्शे ज़मीं को ज़िंदगी बख़्शी 'रजत' की ज़ीस्त गुज़रेगी मोहब्बत के बिना कैसे यही सोचा तभी तो रब ने उस को दोस्ती बख़्शी