उस के चेहरे सा रंग-ओ-आब कहाँ इतने पानी में आफ़्ताब कहाँ इश्क़ में तेरे कामयाब कहाँ कोई मेरी तरह ख़राब कहाँ लोग बदले हैं दिल नहीं बदले दिल न बदलें तो इंक़लाब कहाँ आप का हुक्म है तो बिस्मिल्लाह नार-ए-दोज़ख़ मुझे अज़ाब कहाँ बाहमी रब्त ऐन फ़ितरत है वर्ना काँटे कहाँ गुलाब कहाँ क्यों डराते हो नार-ए-दोज़ख़ से ज़िंदगी से बुरा अज़ाब कहाँ ख़ामुशी इख़्तियार कर 'ज़ेबा' इस से बेहतर कोई जवाब कहाँ