उस की ख़ुशबू को ग़ज़लों में ढालें ज़रा ऐसा तर्ज़-ए-सुख़न और बयाँ लाइए गीत गाएँ हवाएँ भी हो के मगन फिर से गुलशन में वो शोख़ियाँ लाइए चाँदनी रात ग़म की अलामत तो है हुस्न इस का मिसालों में मिलता नहीं इश्क़ करने के आदाब ये भी तो हैं अपने लहजे में ख़ामोशियाँ लाइए जब भी पाई हैं सौग़ात में ज़ुल्मतें एक तोहफ़ा तुलू-ए-सहर भी मिला इंक़िलाब-ए-ज़माना जो दरकार हो ज़िंदगी के लिए आँधियाँ लाइए मोगरा मोतिया सौसन-ओ-चाँदनी रात रानी चम्बेली बनफ़शा कँवल गुल्सिताँ में बहारें हैं ऐ दोस्तो लाइए ढूँड कर तितलियाँ लाइए पुर-सुकूँ था समुंदर तो ख़ामोश थे ठहरे पानी में क्या बादबाँ खोलते आज तुग़्यानियाँ आई हैं झूम कर ना-ख़ुदाओ ज़रा कश्तियाँ लाइए थे 'मुशीर' और 'क़ैसर' जहाँ के अमीं दिल्ली वालों की वो रौनक़ें क्या हुईं लाइए जामा' मस्जिद की आग़ोश में 'शाहिद' अनवर वही हस्तियाँ लाइए संदली मुश्क-ओ-अम्बर से और ऊद से पैरहन 'शाहिद' अनवर वो महकें सदा जो शहीदों के तन की हो ज़ीनत वही आसमानी क़बा पर्नियाँ लाइए