वो जिन्हें हर राह ने ठुकरा दिया है मंज़िलों को ग़म उन्हीं का खा रहा है मेरा दिल है देखने की चीज़ लेकिन इस को छूना मत कि ये टूटा हुआ है अजनबी बन कर वो मिलता है उन्हीं से जिन को वो अच्छी तरह पहचानता है चीख़ती थी ईंट एक इक जिस की कल तक आज वो सारा मकाँ सोया पड़ा है क्या अलामत है किसी क़ब्ज़े की 'आबिद' ये जो मेरे घर पे कुछ लिक्खा हुआ है