यूँ भी शब-ए-फ़िराक़ सज़ा काटते रहे लिख लिख के ख़त पे उन का पता काटते रहे अहल-ए-हवस ने काट ली सोने की खेतियाँ ख़ुद्दार लोग फ़स्ल-ए-अना काटते रहे जो जिस के था नसीब में ले कर चला गया क़िस्तों में अपने भाई गला काटते रहे जिन को पयाम-ए-अम्न से परख़ाश थी बहुत वो पर कबूतरों के सदा काटते रहे तूफ़ाँ का ज़ोर कम हुआ लहरें भी थम गईं दरियाओं में सफ़ीने हवा काटते रहे हर गाम पर था माँ की दुआओं का आसरा दुश्मन हज़ार दस्त-ए-दुआ' काटते रहे 'सरवत' किसी मक़ाम पे खाई नहीं शिकस्त रस्ता सफ़र में राह-नुमा काटते रहे